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ऐन फ्रैंक के डायरी के पन्ने ॅ

शुक्रवार, 10 जुलाई, 1942 मेरी प्यारी किट्टी.

मैंने घर के लंबे-चौड़े बखान के साथ हो सकता है तुम्हें बोर कर दिया हो लेकिन मैं अभी भी यही सोचती हूँ कि तुम जानो, हम कहाँ आ पहुँचे हैं। मैं यहाँ कैसे आ पहुँची हूँ, इसके बारे में तुम्हें मेरे आगे के पत्रों से पता चलेगा।

लेकिन पहले मैं अपना किस्सा जारी रखूँगी। मैंने अभी तक अपनी बात पूरी नहीं की है। 263 प्रिंसेनग्रास्ट में हमारे पहुँचने पर मिएप तुरंत हमें लंबे गलियारे से सीढ़ियों से ऊपर दूसरी मंजिल पर और फिर एनेक्सी में ले आई। उसने हमें अकेला छोड़ा और हमारे पीछे दरवाजा बंद कर दिया। मार्गोट अपनी साइकिल पर पहले ही आ चुकी थी और हमारी राह देख रही थी।

हमारी बैठक और दूसरे कमरे सामान से ठुसे पड़े थे। कहीं तिल धरने की जगह नहीं थी। पिछले महीनों में जो कार्ड बोर्ड के बक्से ऑफ़िस में भेजे गए थे, चारों तरफ़ फ़र्श पर बिस्तरों पर फैले पड़े थे छोटा कमरा फ़र्श से छत तक कपड़ों से अटा पड़ा था। उस रात अगर हम ढंग से सोने के बारे में सोचते तो ये सारा सामान तरतीब से लगाने की जरूरत थी। हमें सफ़ाई का काम तुरंत शुरू कर देना था। माँ और मार्गोट की तो हाथ हिलाने की भी हिम्मत नहीं थी। वे बिना चादरों वाली गद्दियों पर ही पसर गई। थको बेहाल और पस्त। लेकिन पापा और मैंने सफ़ाई का मोर्चा सँभाला और तुरंत जुट गए। हम सारा दिन पैकिंग खोलते रहे, अलमारियाँ भरते रहे, कीलें ठोकते रहे और तमाम सामान ठिकाने से लगाते रहे। आखिर थक कर चूर हो गए और साफ़ बिस्तरों पर ढह गए। हमने पूरे दिन में एक बार भी गरम खाना नहीं खाया था। लेकिन परवाह किसे थी। माँ और मार्गोट की थकान के मारे बुरी हालत थी और पापा और मुझे फुर्सत नहीं थी ।

मंगलवार की सुबह हमने पिछली रात के छोड़े हुए काम को पूरा करना शुरू किया। बेप और मिएप हमारे राशन कूपनों से शॉपिंग करने गई और पापा ने ब्लैक आउट वाले परदे लगाए। मैंने रसोई का फ़र्श रगड़-रगड़ कर साफ़ किया। सवेरे से रात तक हम लगातार काम में जुटे रहे।


बुधवार तक तो मुझे यह सोचने की फुर्सत ही नहीं मिली कि मेरी जिंदगी में कितना बड़ा परिवर्तन आ चुका है। अब गुप्त एनेक्सी में आने के बाद पहली बार मुझे थोड़ी फुर्सत मिली कि तुम्हें बताऊँ कि मेरी जिंदगी में क्या हो चुका है और क्या होने जा रहा है।

तुम्हारी ऐन

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